[Village Tour] फेम टूर दिलाएगा मेनार गाव को नयी पहचान
एक ओर जहा गाव पक्षी विहार है वही दूसरी ओर महादेव की विशालकाय [52 फीट ]शिव प्रतिमा वही गाव के दोनों तरफ विशालकाय जलाशय ओर सान्स्क्र्तिक द्रस्थि से गाव का होली के दो दिन बाद मनाए जाना वाला विश्व प्रषिद्ध जमराबीज का त्योहार मनाया जाता है |
Menar Thumb Chok History मेनार थम्भ के संर्दभ मे
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Menar Thumb |
मेनार थम्भ के संर्दभ मे ........
मेनार गांव उदयपुर एवंम चितोड़्
के मध्य दो सरोवरो के बिच उंची पहाड़ी पर स्थित है। प्राकृतिक संपदा से
परिपूर्ण इस गाँव का ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है
यहा मेनारिया ब्राह्मण निवास करते है !यह गाँव ब्राह्मणवादी के साथ साथ
सभी लोग हिन्दुवादी है ! और अपनी आन बान के लिए मर मिटने वाले है । इस गाँव की कुल देवी माँ अम्बे है !
ब्रह्म सागर तालाब की पाल पर विशाल शिव प्रतिमा स्थित है ,
मेनार गांव की स्थापना विक्रम संवत १ में हुई । मेनार ऋषि मुनियों की धरा
रही है यह केदारेश्वर कोकलेश्वर ऋषियों की तपस्वी धरा रही है जिनके मंदिर
आज केदारेश्वर महादेव केदारिया राणेराव महादेव मंदिर है ( जो महायज्ञ
सप्तऋषियो ने किया था वही मंदिर राणेराव महादेव मंदिर है )
History Of Menar-मेनार की कहानी
......................................................... श्री
गणेशाय
नमः..............................................................
पुराणों की प्रमाणिकता के आधार पर श्रृष्टि के रचियता श्री ब्रह्माजी ने मानसिक श्रृष्टि की उत्पति की ।
श्री
नारद मुनि के साथ कई ऋषि प्रकट हुए । इन ऋषियों में नगम ऋषि हुए । नगम ऋषि
के भारदवाज ऋषि हुए ।भारद्वाज ऋषि से हमारी गोत्र भारद्वाज कहलाई ।
भारद्वाज
ऋषि श्री विष्णु के अनन्य भक्त हुए साथ ही ये कुल देवी अम्बा के उपासक थे
।यजुर्वेद के झाता , हनुमान के उपासक और इनकी तपस्थली सरयू नदी के किनारे
थी ।
भारद्वाज गोत्र में उदंबर ऋषि हुए ।इस समय सूर्य
वंशी रजा महान्धता हुए ।रजा ने रुददी नगरी बसाई । यह समय त्रेतायुग का था ।
त्रेतायुग सम्वंत ९५१ में रुदारी नगरी के पास जंगल में उदंबर ऋषि अपनी
पत्नी के साथ रहते थे ।एक समय गर्भावस्था में ऋषि पत्नी जंगल में गाये
चराने जय । इसी समय राजा महान्धाता वहा आए । राजाने माता को जल पिलाया तथा
बचो की सार संभाल कर आश्रम में पहुँचाया । ऋषि उदंबर एंव ऋषि पत्नी ने रजा
को चक्रवाती सम्राट होने का आशिर्वास दिया ।
दोनों पुत्रो का नाम करण संस्कार किया गया। ये कोक्लेश्वर और केदारेश्वर के नाम से प्रशिद्ध हुए ।
राजा
महान्धाताने नर्बदा नदी के किनारे महादेव जी के मंदिर का निर्माण करवाया
तथा कई यज्ञ किए ।इन यज्ञो में से राजन ने एक यज्ञ मेवाड़ की पवन धरा पर भी
किया । राजन ने रनर नमक एक सुन्दर सरोवर बनाया तथा सरोवर की पूर्व दिशा
में भगवन शिव का मन्दिर बनवाया । यज्ञ कार्य के लिए राजा मान्धाता ने कई
ऋषि मुनियों को आमंत्रित किया इस यज्ञ में कोक्लेश्वर तथा केदारेश्वर ऋषि
दोनों भाइयो ने भाग लिया इस समय दोनों भाई तरुण अवस्था में थे ।यज्ञ समप्थी
के पश्चात ऋषियों ने राजन से भूमिदान के लिए कहा ।भूमि दान स्वीकार करने
के लिए कोई ऋषि तैयार नहीं हुए । तब राजा रानी के साथ विशाल यज्ञ शाला के
द्वार पर खड़े हो गए । राजा ने अपने हाथ पान का बीड़ा लिया जिसमे ५२ हजार
बीघा भूमि का दान लिखा हुआ था ।राजा प्रत्येक rishiको पान का बीड़ा स्वीकार
करने के लिए कहने लगे किसी ने स्वीकार नहीं किया । अंत में दोनों भाई
कोक्लेश्वर तथा केदारेश्वर आये । राजन ने दोनों से बहुत विनती की तब
कोक्लेश्वर ऋषि ने राजन को पान के बिदे को अपने पाँव के अंगुष्ट पर रखने के
लिए कहा ।
भूमि दान से युक्ता पान स्वीकार करते ही दोनों
भाइयो की तपश्या शीण हो गई दोनों भाई क्रोधित हो उठे । और कहा "राजन तुमने
यह अच्छा नहीं किया , तुमने भूमि दान लिखा हुआ पान हमारे अंगुष्ट पर रख
दिया । हम तुम्हे श्राप देते हे की जब तुम नर्बदा किनारे भगवान् शिव के
दर्शन करने जाओगे तब तुम अपनी फोज सहित पत्थर के बन जाओगे । और ओंकारेश्वर
महान्धता के
नाम से प्रसिद्ध होंगे " | ( स्कन्दपुराण )