Menar Thumb Chok History मेनार थम्भ के संर्दभ मे

Menar Thumb

 मेनार थम्भ के संर्दभ मे ........

मेनार गांव उदयपुर एवंम चितोड़् के मध्य दो सरोवरो के बिच उंची पहाड़ी पर स्थित है। प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण इस गाँव का ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है
यहा मेनारिया ब्राह्मण निवास करते है !यह गाँव ब्राह्मणवादी के साथ साथ

सभी लोग हिन्दुवादी है ! और अपनी आन बान के लिए मर मिटने वाले है । इस गाँव की कुल देवी माँ अम्बे है !

ब्रह्म सागर तालाब की पाल पर विशाल शिव प्रतिमा स्थित है , 

मेनार गांव की स्थापना विक्रम संवत १ में हुई । मेनार ऋषि मुनियों की धरा रही है यह केदारेश्वर कोकलेश्वर ऋषियों की तपस्वी धरा रही है जिनके मंदिर आज केदारेश्वर महादेव केदारिया राणेराव महादेव मंदिर है ( जो महायज्ञ सप्तऋषियो ने किया था वही मंदिर राणेराव महादेव मंदिर है )


मेनार स्थापना के समय प्रमुख देव स्थानों की स्थापना भी की गई जिनमें प्रमुख हनुमान मंदिर जो की एक गुफ़ा में था वर्तमान मे निम का चौराहा में सरोवर किनारे सि्तथ हे और खेड़ा खुंट भेरु नाथ देवरा और मेनार थम्भ चौक स्तिथ एक थम्भ की स्थापना भी की गई मेनार थम्भ की स्थापना विक्रम संवत १ मे हुई इसका प्रथम जिर्णोद्वार मधुश्याम जी द्वारा विक्रम सवंत १४४० में किया गया और अंतिम जिर्णोद्वार ग्रामवासियो द्वारा सन २०६० को वैसाख शुक्ला तृतीया को किया गया ( मधुश्याम जी मंदिर औंकारेश्वर चबूतरे के पास हरिमंदिर में है मेनार का प्रत्येक व्यक्ति इनके दर्शन के बाद ही शादी के लिए जाता है वे ऋषिमुनी की संतान है और ये हमारे पूर्वज है 
मेनार थम्भ पर इसके बारे में आज भी लिखा है सूर्य का प्रतीक चिन्ह और " जो दृढ़ राखे धर्म को ताही राखे करतार " लिखा हुआ है एवम 
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से ू देखा जाये तो इतिहास मे जब चित्तोड़ का नामोनिशान भी कहीं नही था तब मेनार ने अपना अस्तित्व बनाए रखा। महाराणा प्रताप के पिता श्री उदय सिंह से इस गांव के कथानक जुड़े हैं। ( बाल्यकाल मे जब बलविर के षड्यंत्र से त्रस्त पन्नाधाय ने अपने पुत्र की बलि देकर उदय सिंह को ले जब चित्तोड़ के जगंलो मे छिपति हुई व बलविर के गुप्तचर सैनिको से बचती हुई मेनार मे आ पहुंची और बलविर के सैनिकों ने पन्नाधाय का यहाँ पता लगा लिया। लेकिन मेनार के मेनारिया बा्ह्मणो ने पन्नधाय को पुर्ण सरक्षंण देने का वचन दिया और पन्नाधाय को अल्प समयावधी का विश्राम करवाया । सेनिको द्वारा पूछे जाने पर समस्त गांव वालों ने पन्नाधाय को अपने गाँव की बहु -बेटी बताया।

प्रत्युत्तरै मे सैनिकों ने बा्ह्मणो को पन्नाधाय के साथ भोजन करवाने की बात कही । तब केले के पत्ते के दोनों भागों पर सामूहिक रुप से पन्नाधाय ने बा्ह्मणो के साथ सामूहिक रूप से भोजन किय । जबकि उस वक्त क्षत्रियों का बा्ह्मणो के साथ भोजन करना वर्जित था। लेकिन अपने धर्म की रक्षा की खातिर मेनारिया बा्ह्मण प्रजाति ने जात पात व समाज से बढ़कर राष्ट्रधर्म को सर्वोपरि माना और एक धाय मॅा के साथ भोजन कर देश व संस्कृति कि रक्षा में अपना सहयोग दिया जो अपने आप में अपुर्व उदाहरण हैं
यहाँ के विर मेनारिया ब्राहम्णो ने मुग़लों पर विजय प्राप्त की मुग़लों के थाने को यंहा से खदेड़ दिया उसी उपलक्ष्य में मेनार का प्रमुख त्योहार जमराबिज मनाया जाता है |


Share:

No comments:

Post a Comment

Subscribe On Youtube

Facebook

Popular

Powered by Blogger.

Tags

History (2) Menar (5) News Box (1) Photos (3)

Video Of The Day

Labels

Recent Posts